वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

 हज़रत-ए-शैख़ अबूबकर निसाज

 

रहमतुह अल्लाह अलैहि

 

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि का इस्म गिरामी शेख़ अबूबकर निसाज रहमतुह अल्लाह अलैहि है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के वालिद का इस्म गिरामी अबदुल्लाह है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि तोस के रहने वाले थे। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि बहुत बड़े आलम दीन थे। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि हज़रत-ए-शैख़ अब्बू अलक़ा सिम गरगानी रहमतुह अल्लाह अलैहि की मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा हैं और इस के इलावा शेख़ अबूबकर दीनोरी रहमतुह अल्लाह अलैहि से भी फ़ैज़ याफ़ता हैं।

आप रहमतुह अल्लाह अलैहि इब्तदाए हाल में सख़्त रियाज़त और मुजाहिदा करते थे। बिलआख़िर आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के मुजाहिदा ने मुशाहिदा का रूप इख़तियार करलिया जिस पर आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ख़ूब रोय। ग़ैब से आवाज़ आई ए निसाज हमारी तलब पर ही क़नाअत कर ये कि ये दौलत तलब भी हम हर किसी को नहीं देते तुझे पाने से क्या ग़रज़ है।

किसी ने शेख़ अब्बू निसाज रहमतुह अल्लाह अलैहि से पूछा कि मतलूब का दीदार किस तरह हासिल किया जा सकता है। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़रमाया सिदक़ की आँख से तलब के आईना में मतलूब का दीदार किया जा सकता है।

शेख़ अहमद ग़ज़ाली रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं कि एक दिन मेरे मुर्शिद हज़रत अबूबकर निसाज रहमतुह अल्लाह अलैहि अपनी मुनाजात में ये कह रहे थे कि या इलाही मेरे जैसे बे कार गुनाहगार आदमी पैदा करने की क्या हिक्मत है। ग़ैब से निदा आई कि इस में ये हिक्मत है कि में अपना जमाल तेरे मुँह के आईना में देखूं और अपनी मुहब्बत तेरे दिल में डालूं।

हज़रत-ए-शैख़ अबूबकर निसाज रहमतुह अल्लाह अलैहि ४८७हिज्री को इस दार फ़ानी से रुख़स्त हुए।